Shiv Kumar
Yoga Instructor
Bharat Vikas Parishad
Maharana Pratap Shakha
MOHALI
योग - YOGA
‘योग‘ शब्द संस्कृत शब्द ‘युज‘ से आया है जिसका अर्थ है ‘एकजुट करना या एकीकृत करना‘।
योग एक वैज्ञानिक प्रणाली है और भारतीय संस्कृति की अमूल्य धरोहर है।
योग विशुद्ध विज्ञान है । विज्ञान पदार्थगत है – योग आत्मगत है । विज्ञान को पदार्थ की प्यास है – अतः विज्ञान पदार्थ की खोज करता है। योग विश्वात्मा की प्यास है – अतः योग परमात्मा को खोजता है । योग व्यक्ति की अपनी चेतना और सार्वभौमिक चेतना के मिलन के बारे में है।
यह स्वास्थ्य देखभाल और स्वस्थ जीवन के लिए एक प्रभावी दवा रहित, अहिंसक पद्धति है। योग विद्या किसी धर्म, मत, समुदाय, परम्परा या कल्पना पर आधारित न होकर सर्वहितकारी सफल जीवन पद्धति है । संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 11 दिसंबर, 2014 को 21 जून को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के रूप में घोषित किया था।
मनुष्य शक्ति का केंद्र है – शक्ति उस के भीतर निहित है । मनुष्य जीवन की सफलता का भेद इसी शक्ति का विकास है । यही शक्ति विकसित होकर लोक और परलोक की सिद्धि का कारण बनती है । शक्ति विकास के इस कार्यक्रम का नाम अध्यात्म (योग) विद्या है ।
योग और प्राणायाम शरीर में छिपी ऊर्जा को जगाते हैं । हम अपने शरीर की शक्ति का केवल 33% उपयोग कर पाते हैं – शेष अनुपयोगी ही रह जाती हैं । योग विद्या द्वारा यही सोई हुई शक्तियां जाग्रत होकर जीवन को उन्नत, उज्जवल और निर्मल बनाती हैं । इन सोई हुई शक्तियों के सक्रिय होने से हमारे अन्दर विवेक, समझ और अन्तर–भावनाओं में विशेष परिवर्तन आने से ज्ञान के नित नये द्वार खुलने आरम्भ हो जाते हैं जिसके फलस्वरूप मन की सोच आत्मा के अनुरूप हो जाती है ।
पातंजलि ऋषि द्वारा रचित योग दर्शन में वर्णित – यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान व समाधि, जिसे अष्टांग योग भक्ति की संज्ञा दी गयी है, का पूर्णरूपेण अनुष्ठान करते हुए रूप, रस, गन्ध, शब्द और स्पर्श – इन पांच विषयों की तृष्णा से मन को हटाकर ईश्वर में लगाना सम्भव है।
योग विविधता – उद्धव जी को भगवान श्री कृष्ण ने तीन योग – ज्ञान योग, कर्म योग और भक्ति योग का उपदेश दिया था। योग प्रदीप में राज योग, हठ योग, लय योग, ध्यान योग, भक्ति योग, जप, क्रिया योग, भेषज योग, मन्त्र योग, कर्म योग, ज्ञान योग और अष्टांग योग – इस प्रकार बारह प्रकार के योगों का उल्लेख है। स्वामी विवेकानन्द जी ने योग के चार प्रकार बताये हैं – कर्म योग, भक्ति योग, राज योग और ज्ञान योग।
अपनी अंतरात्मा के साथ एकाकार होने के अनुभव को योग कहते हैं। क्योंकि अंतरात्मा का सीधा सम्बन्ध परम चेतन शक्ति अर्थात परमात्मा के साथ होता है। इसलिये योग करते समय हम उस चेतन शक्ति से ऊर्जा प्राप्त करते हैं। प्राणों (श्वासों) के द्वारा इस भौतिक शरीर में उस ऊर्जा का प्रभाव बढ़ने के साथ ही हमारे शारीरिक और मानसिक रोगों का नाश होना शुरू हो जाता है, मन का तनाव – शान्ति और प्रसन्नता में परिवर्तित हो जाता है। मन भौतिक संसार से हट कर आध्यात्मिक जगत की ओर अग्रसर होता है। यह ध्यान की अवस्था के प्रथम चरण की शुरूआत है। इस तरह निरन्तर अभ्यास करने से हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता का उत्थान होता है, शारीरिक व्याधियों व सामाजिक बुराईयों से छुटकारा मिलता है। हम आध्यात्मिक उन्नति की ओर बढ़ते हैं और जीवन सुखमय हो जाता है।
योगासन:
स्थिर सुखम आसनम् अर्थात शरीर की वह स्थिति जिसमें हम शरीर व मन को एकाग्र करके लम्बे समय तक बैठ सकें और सुख और शान्ति का अनुभव कर सकें। आसनों का अभ्यास शारीरिक क्षमता, रोग का प्रकोप, ऋतु व स्थान को ध्यान में रख कर ही करना चाहिए। योगासनों द्वारा सामान्य स्वास्थय के साथ साथ अनेक असाध्य रोगों का उपचार भी सम्भव है।
योगासन करते समय तीन बातों पर विशेष ध्यान दिया जाता है। क्षमता अनुसार विभिन्न अंगों को मोड़ना व उन पर दबाव देना, श्वास क्रिया द्वारा शुद्ध प्राणवायु फेफड़ों में भरना, रोकना और बाहर निकालना, अपना ध्यान किसी विशेष अंग पर केंद्रित करना। ऐसा करने से मांसपेशियों में खिंचाव के साथ आन्तरिक अंगों की मालिश होती है। सभी नसों, नाड़ियों में शुद्ध प्राणवायु में रक्त का संचार सुचारू रूप से आरम्भ हो जाता है।
प्राणायाम (प्राण + आयाम):
प्राण वह मूल शक्ति है जो प्राणवायु के रूप में हमारे शरीर में प्रवेश करती है और हृदय के रास्ते रक्त संचार के माध्यम से पूरे शरीर का पोषण करती है। आधुनिक जीवनशैली व अत्याधिक मानसिक तनाव के कारण उचित मात्रा में प्राणशक्ति व रक्त का संचार शरीर के सभी अंगों में न होने के कारण हम कई रोगों की चपेट में आ जाते हैं।
आयाम का अर्थ है विस्तार। इस प्रकार प्राणायाम के अभ्यास से शरीर की हर नस-नाड़ी में प्राणशक्ति का संचार किया जा सकता है और हम रोगों से मुक्ति पा सकते हैं।
“योग क्यों अपनायें”
· योग एक अहिंसक व्यायाम है। आसन शरीर में लचीलापन बढ़ाते हैं जिससे चोट लगने की सम्भावना कम हो जाती है। योग से हम रोगों को शरीर से दूर रख सकते हैं। इसके करने से शरीर में शक्ति का संचार होता है। थकावट नहीं होती। इसलिये मानसिक परेशानी में या दिन भर की थकावट के बाद अगर योगासन व प्राणायाम किये जायें तो सारी थकावट दूर हो जाती है और शरीर में स्फूर्ति आ जाती है। दूसरे व्यायामों में ऐसा नहीं होता।
· योग पद्धति एक आध्यात्मिक पद्धति है। इसको अपनाने से व्यक्ति का चतुर्मुखी विकास होता है। शारीरिक स्वास्थय के साथ आध्यात्मिक व सामाजिक उन्नति भी होती है। इसमें सतोगुण की प्रधानता होने के कारण हमारा मानसिक विकास होता है। बुद्धि प्रखर होती है। अन्य किसी भी व्यायाम से इतने अधिक और सूक्ष्म लाभ नहीं होते।
· योग द्वारा अनेक साध्य-असाध्य रोगों का उपचार भी सम्भव है।
· योग क्रियाओं द्वारा शरीर की समस्त नाड़ियों व कोशिकाओं को साफ किया जाता है जिससे शुद्ध वायु व रक्त का सुचारू संचार होने से रोग होने की सम्भावना ही कम हो जाती है।
· हमारे शरीर में अनेक ग्रंथियाँ हैं जिनसे विभिन्न जीवन-रस का स्राव होता रहता है जो हमें स्वस्थ व शक्तिशाली बनाते हैं। यदि यह रस पर्याप्त मात्रा में न निकले तो शरीर का विकास रूक जाता है और अनेक रोगों के उत्पन्न होने का कारण बनता है। योग से इन ग्रंथियों के सुचारू रूप से संचालन के विभिन्न सूक्ष्म साकधन हैं।
· योगासनों व प्राणायाम के द्वारा फेफड़े लचकदार बनते हैं। इनके फैलने और सिकुड़ने की क्षमता बढ़ जाती है। अधिक प्राणवायु ग्रहण करने के कारण रक्त की शुद्धि होती है और रोगों से लड़ने की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ जाती है।
· मांसपेशियों में कड़ापन आने से बुढ़ापा जल्दी आ जाता है। शरीर को स्वस्थ व युवा रखने के लिये मांसपेशियों में लचक होनी चाहिये। योगासन इस कार्य के लिये अति उत्तम साधन हैं।
· यौवन अवस्था की लम्बी अवधि के लिये रीढ़ की हड्डी का मज़बूत होना बहुत आवश्यक है क्योंकि समस्त शरीर में रक्त का संचार करने वाली नलिकायें इसी में से हो कर गुजरती हैं। शरीर में होने वाली विभिन्न गतिविधियों की जानकारी भी मस्तिक्षक को इसी रास्ते से मिलती है। इसलिये रीढ़ की हड्डी जितनी मज़बूत व लचकदार होगी – शरीर उतना ही अधिक स्वस्थ और दीर्घायु होगा। योग में रीढ़ की हड्डी को स्वस्थ रखने के साधन उपलब्ध हैं।
· पाचन प्रणाली शरीर की सबसे महत्वपूर्ण कार्यप्रणाली है। यदि हम पौष्टिक आहार भी खायें और उसका पूर्णतया पाचन न हो, तो वह आहार व्यर्थ ही गया समझो। गलत खानपान व रहन-सहन से यह दूषित हो जाती है जिससे पेट के विभिन्न रोग उत्पन्न हो जाते हैं। योग से पाचन प्रणाली समुचित रूप से कार्य करती है।
· यौगिक आसन व प्राणायाम करने से मन की एकाग्रता और आत्मविश्वास में वृद्धि होती है। बुद्धि का विकास होता है। जिससे मनुष्य का सुचरित्र विकसित होता है।
· योग एक स्वस्थ व्यक्ति, बच्चे, बूढ़े, रोगी, सभी कर सकते हैं।
· किसी योग्य प्रशिक्षक से सीख कर ही योगाभ्यास करना उचित है अन्यथा लाभ के स्थान पर हानि की सम्भावना भी हो सकती है।
· ठीक ही कहा है –
पहले यह सब साधिये काया होवे सुद्धि ।
रोग न लागे देह को, उज्जवल होवे बुद्धि ॥
The word “Yoga” comes from the Sanskrit word “yuj” which means “to unite or integrate”. Yoga is about the union of a person’s own consciousness and the universal consciousness. It is primarily a way of life, first propounded by Maharishi Patanjali in systematic form Yogsutra.
The discipline of Yoga consists of eight components namely, restraint (Yama), Observance of austerity (Niyama), physical postures (Asana), breathing control (Pranayam), restraining of sense organs (Pratyahar), contemplation (Dharna), meditation (Dhyan) and Deep meditation (Samadhi).
These steps in the practice of Yoga have the potential to elevate social and personal behaviour and to promote physical health by better circulation of oxygenated blood in the body, restraining the sense organs and there by inducing tranquillity and serenity of mind and spirit. The practice of Yoga has also been found to the useful in the prevention of certain psychosomatic diseases and improves individual resistance and ability to endure stressful situations.
Yoga is a promotive, preventive rehabilitative and curative intervention for overall enhancement of health status. A number of postures are described in Yoga literature to improve health, to prevent diseases and to cure illness. The physical postures are required to be chosen judiciously and have to be practiced in the correct way so that the benefits of prevention of disease, promotion of health and therapeutic use can be derived from them.
The United Nations General Assembly had declared June 21st as the International Yoga Day on 11th December, 2014.
“ॐ सर्वेशां स्वस्तिर्भवतु।
सर्वेशां शान्तिर्भवतु।
सर्वेशां पूर्णंभवतु ।
सर्वेशां मङ्गलंभवतु।
लोकाः समस्ताः सुखिनो भवन्तु।
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः॥
सब का भला हो। सब को शान्ति मिले। सभी को पूर्णता मिले।
सब का मंगल हो। सभी लोक और इस लोक के समस्त जन सुखी हों।
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः